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म॒रुत्सु॑ वो दधीमहि॒ स्तोमं॑ य॒ज्ञं च॑ धृष्णु॒या। विश्वे॒ ये मानु॑षा यु॒गा पान्ति॒ मर्त्यं॑ रि॒षः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

marutsu vo dadhīmahi stomaṁ yajñaṁ ca dhṛṣṇuyā | viśve ye mānuṣā yugā pānti martyaṁ riṣaḥ ||

पद पाठ

म॒रुत्ऽसु॑। वः॒। द॒धी॒म॒हि॒। स्तोम॑म्। य॒ज्ञम्। च॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। विश्वे॑। ये। मानु॑षा। यु॒गा। पान्ति॑। मर्त्य॑म्। रि॒षः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (विश्वे) सब आप लोग (धृष्णुया) दृढ़ (मानुषा) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगा) वर्षों को (स्तोमम्) प्रशंसा करने योग्य (यज्ञम्) पुरुषार्थ को (मर्त्यम्, च) और मनुष्य को (रिषः) हिंसक के (पान्ति) रखते अर्थात् बचाते हैं, उन (वः) आप लोगों को हम लोग (मरुत्सु) मनुष्यों में (दधीमहि) धारण करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो देव और मनुष्यसम्बन्धी युगों और वर्षों को जानते हैं, वे गणितविद्या के जाननेवाले होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये विश्वे भवन्तो धृष्णुया मानुषा युगा स्तोमं यज्ञं मर्त्यं च रिषः पान्ति तान् वो वयं मरुत्सु दधीमहि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुत्सु) मनुष्येषु (वः) युष्मान् (दधीमहि) (स्तोमम्) श्लाघनीयम् (यज्ञम्) पुरुषार्थम् (च) (धृष्णुया) दृढानि (विश्वे) सर्वे (ये) (मानुषा) मनुष्याणामिमानि (युगा) युगानि वर्षाणि (पान्ति) रक्षन्ति (मर्त्यम्) मनुष्यम् (रिषः) हिंसकात् ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये दैविकमानुषाणि युगानि वर्षाणि च जानन्ति ते गणितविद्याविदो जायन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे दैवी व माणूस यासंबंधीचे युग व वर्ष जाणतात ते गणित विद्या जाणणारे असतात. ॥ ४ ॥